यदि तू उपर्युक्त अभ्यास में भी असमर्थ है तो केवल मेरे लिये कर्म करने के ही परायण हो जा । इस प्रकार मेरे निमित्त कर्मों को करता हुआ भी मेरी प्राप्ति रूप सिद्धि को ही प्राप्त होगा ।।10।।
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If you are unequal even to the pursuit of such practice, be intent to work for me; you shall attain perfection (in the shape of my realization) even by performing actions for my sake. (10)
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