इस संसार वृक्ष का स्वरूप जैसा कहा है वैसा यहाँ विचार काल में नहीं पाया जाता । क्योंकि न तो इसका आदि है, न अन्त है तथा न इसकी अच्छी प्रकार से स्थिति ही है । इसलिये इस अहंता, ममता और वासना रूप अति दृढ मूलों वाले संसार रूप पीपल के वृक्ष को दृढ वैराग्य रूप शस्त्र द्वारा काटकर –।।3।।
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The nature of this tree of creation does not on mature thought turn out what it is represented to be; for it has neither beginning nor end, nor even stability. Therefore, felling this Pipal tree, which is most firmly rooted, with the formidable axe of dispassion. (3)
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