"ग़ालिब का प्रारम्भिक काव्य" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replacement - " महान " to " महान् ")
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{ग़ालिब विषय सूची}}
 
{{ग़ालिब विषय सूची}}
 +
[[चित्र:Ghalib-4.jpg|thumb|200px|मिर्ज़ा ग़ालिब]]
 +
[[ग़ालिब]] [[उर्दू]]-[[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] के प्रख्यात [[कवि]] तथा महान् शायर थे। दिल्ली में ससुर तथा उनके प्रतिष्ठित साथियों एवं मित्रों के काव्य प्रेम का इन पर अच्छा असर हुआ। इलाहीबख़्श ख़ाँ पवित्र एवं रहस्यवादी प्रेम से पूर्ण काव्य-रचना करते थे। वह पवित्र विचारों के आदमी थे। उनके यहाँ सूफ़ियों तथा शायरों का जमघट रहता था। निश्चय ही ग़ालिब पर इन गोष्ठियों का अच्छा असर पड़ा होगा। यहाँ उन्हें तसव्वुफ़ (धर्मवाद, आध्यात्मवाद) का परिचय मिला होगा, और धीरे-धीरे यह जन्मभूमि [[आगरा]] में बीते बचपन तथा बाद में किशोरावस्था में [[दिल्ली]] में बीते दिनों के बुरे प्रभावों से मुक्त हुए होंगे। दिल्ली आने पर भी शुरू-शुरू में तो मिर्ज़ा का वही तर्ज़ रहा, पर बाद में वह सम्भल गए। कहा जाता है कि मनुष्य की कृतियाँ उसके अन्तर का प्रतीक होती हैं। मनुष्य जैसा अन्दर से होता है, उसी के अनुकूल वह अपनी अभिव्यक्ति कर पाता है। चाहे कैसा ही भ्रामक परदा हो, अन्दर की झलक कुछ न कुछ परदे से छनकर आ ही जाती है। इनके प्रारम्भिक काव्य के कुछ नमूने इस प्रकार हैं-<br />
 
{{दाँयाबक्सा|पाठ=ग़ालिब नवाबी ख़ानदान से ताल्लुक रखते थे और [[मुग़ल]] दरबार में उंचे ओहदे पर थे इसलिये उन्हें अपनी अय्याशियों पर लगाम लगाना बेहद मुश्किल था।|विचारक=}}
 
{{दाँयाबक्सा|पाठ=ग़ालिब नवाबी ख़ानदान से ताल्लुक रखते थे और [[मुग़ल]] दरबार में उंचे ओहदे पर थे इसलिये उन्हें अपनी अय्याशियों पर लगाम लगाना बेहद मुश्किल था।|विचारक=}}
[[चित्र:Ghalib-4.jpg|thumb|200px|मिर्ज़ा ग़ालिब]]
 
[[ग़ालिब]] [[उर्दू]]-[[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] के प्रख्यात [[कवि]] तथा महान शायर थे। दिल्ली में ससुर तथा उनके प्रतिष्ठित साथियों एवं मित्रों के काव्य प्रेम का इन पर अच्छा असर हुआ। इलाहीबख़्श ख़ाँ पवित्र एवं रहस्यवादी प्रेम से पूर्ण काव्य-रचना करते थे। वह पवित्र विचारों के आदमी थे। उनके यहाँ सूफ़ियों तथा शायरों का जमघट रहता था। निश्चय ही ग़ालिब पर इन गोष्ठियों का अच्छा असर पड़ा होगा। यहाँ उन्हें तसव्वुफ़ (धर्मवाद, आध्यात्मवाद) का परिचय मिला होगा, और धीरे-धीरे यह जन्मभूमि [[आगरा]] में बीते बचपन तथा बाद में किशोरावस्था में [[दिल्ली]] में बीते दिनों के बुरे प्रभावों से मुक्त हुए होंगे। दिल्ली आने पर भी शुरू-शुरू में तो मिर्ज़ा का वही तर्ज़ रहा, पर बाद में वह सम्भल गए। कहा जाता है कि मनुष्य की कृतियाँ उसके अन्तर का प्रतीक होती हैं। मनुष्य जैसा अन्दर से होता है, उसी के अनुकूल वह अपनी अभिव्यक्ति कर पाता है। चाहे कैसा ही भ्रामक परदा हो, अन्दर की झलक कुछ न कुछ परदे से छनकर आ ही जाती है। इनके प्रारम्भिक काव्य के कुछ नमूने इस प्रकार हैं-<br />
 
 
 
<blockquote><poem>नियाज़े-इश्क़, <ref>प्रेम का परिचय</ref> ख़िर्मनसोज़ असबाबे-हविस बेहतर।
 
<blockquote><poem>नियाज़े-इश्क़, <ref>प्रेम का परिचय</ref> ख़िर्मनसोज़ असबाबे-हविस बेहतर।
 
जो हो जावें निसारे-बर्क़<ref>विद्युत पर न्यौछावर</ref> मुश्ते-ख़ारो-ख़स बेहतर।</poem></blockquote>  
 
जो हो जावें निसारे-बर्क़<ref>विद्युत पर न्यौछावर</ref> मुश्ते-ख़ारो-ख़स बेहतर।</poem></blockquote>  
पंक्ति 39: पंक्ति 38:
 
*[http://www.milansagar.com/kobi-mirzaghalib.html मिर्ज़ा ग़ालिब]
 
*[http://www.milansagar.com/kobi-mirzaghalib.html मिर्ज़ा ग़ालिब]
 
*[http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/urdu/galibletters/ ग़ालिब के ख़त]
 
*[http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/urdu/galibletters/ ग़ालिब के ख़त]
*[http://www.bbc.co.uk/hindi/specials/125_ghalib_pix/index.shtml महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब]
+
*[http://www.bbc.co.uk/hindi/specials/125_ghalib_pix/index.shtml महान् शायर मिर्ज़ा ग़ालिब]
 
*[http://gunaahgar.blogspot.com/2007/12/blog-post_27.html मिर्ज़ा ग़ालिब हाज़िर हो]
 
*[http://gunaahgar.blogspot.com/2007/12/blog-post_27.html मिर्ज़ा ग़ालिब हाज़िर हो]
 
*[http://mirzagalibatribute.blogspot.com/ मिर्ज़ा ग़ालिब]
 
*[http://mirzagalibatribute.blogspot.com/ मिर्ज़ा ग़ालिब]

14:18, 30 जून 2017 के समय का अवतरण

ग़ालिब विषय सूची
मिर्ज़ा ग़ालिब

ग़ालिब उर्दू-फ़ारसी के प्रख्यात कवि तथा महान् शायर थे। दिल्ली में ससुर तथा उनके प्रतिष्ठित साथियों एवं मित्रों के काव्य प्रेम का इन पर अच्छा असर हुआ। इलाहीबख़्श ख़ाँ पवित्र एवं रहस्यवादी प्रेम से पूर्ण काव्य-रचना करते थे। वह पवित्र विचारों के आदमी थे। उनके यहाँ सूफ़ियों तथा शायरों का जमघट रहता था। निश्चय ही ग़ालिब पर इन गोष्ठियों का अच्छा असर पड़ा होगा। यहाँ उन्हें तसव्वुफ़ (धर्मवाद, आध्यात्मवाद) का परिचय मिला होगा, और धीरे-धीरे यह जन्मभूमि आगरा में बीते बचपन तथा बाद में किशोरावस्था में दिल्ली में बीते दिनों के बुरे प्रभावों से मुक्त हुए होंगे। दिल्ली आने पर भी शुरू-शुरू में तो मिर्ज़ा का वही तर्ज़ रहा, पर बाद में वह सम्भल गए। कहा जाता है कि मनुष्य की कृतियाँ उसके अन्तर का प्रतीक होती हैं। मनुष्य जैसा अन्दर से होता है, उसी के अनुकूल वह अपनी अभिव्यक्ति कर पाता है। चाहे कैसा ही भ्रामक परदा हो, अन्दर की झलक कुछ न कुछ परदे से छनकर आ ही जाती है। इनके प्रारम्भिक काव्य के कुछ नमूने इस प्रकार हैं-

Blockquote-open.gif ग़ालिब नवाबी ख़ानदान से ताल्लुक रखते थे और मुग़ल दरबार में उंचे ओहदे पर थे इसलिये उन्हें अपनी अय्याशियों पर लगाम लगाना बेहद मुश्किल था। Blockquote-close.gif

नियाज़े-इश्क़, [1] ख़िर्मनसोज़ असबाबे-हविस बेहतर।
जो हो जावें निसारे-बर्क़[2] मुश्ते-ख़ारो-ख़स बेहतर।

देखता हूँ उसे थी जिसकी तमन्ना मुझको।
आज बेदारी[3] में है ख़्वाबे-ज़ुलेखा मुझको।

हँसते हैं देख-देख के सब नातवाँ[4] मुझे।
यह रंगे-ज़ुर्द[5] है चमने-ज़ाफ़राँ मुझे।

इक गर्म आह की तो हज़ारों के घर जले।
रखते हैं इश्क़ में ये असर हम जिगर जले।
परवाने का न ग़म हो तो फिर किसलिए ‘असद’
हर रात शमअ शाम से ले तास हर जले।

ऊपर जो शेर दिए गए हैं, उनमें एक संवेदना, रसशीलता तो है पर उनकी अपेक्षा उनमें एक छटपटाहट, बेचैनी, जवानी के उड़ते हुए सपनों की छाया और कृत्रिम और कल्पनाओं की उछल-कूद अधिक है। कोई मौलिक भावना नहीं; कोई उथल-पुथल कर देने वाली प्रेरणा नहीं। हाँ, इतना है कि बचपन से ही इनमें कवि-प्रतिभा के बीज दिखाई पड़ते हैं। 7-8 वर्ष की आयु में यह उर्दू (रेखती) तथा 11-12 वर्ष में फ़ारसी में कविता करने लगे थे।


पीछे जाएँ
ग़ालिब का प्रारम्भिक काव्य
आगे जाएँ


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. प्रेम का परिचय
  2. विद्युत पर न्यौछावर
  3. जागरण
  4. दुर्बल
  5. पीत रंग

बाहरी कड़ियाँ

हिन्दी पाठ कड़ियाँ 
अंग्रेज़ी पाठ कड़ियाँ 
विडियो कड़ियाँ 
ऊपर जायें


संबंधित लेख