परंतु हे कुन्ती[1] पुत्र ! दैवीय प्रकृति के आश्रित महात्मा जन मुझ को सब भूतों का सनातन कारण और नाशरहित अक्षर स्वरूप जानकर अनन्य मन से युक्त होकर निरन्तर भजते हैं ।।13।।
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On the other hand, Arjuna, great souls who have embraced the divine nature, knowing me as the prime source of all lives and the imperishable eternal, worship me constantly with none else in mind. (13)
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