गीता 9:13

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गीता अध्याय-9 श्लोक-13 / Gita Chapter-9 Verse-13

प्रसंग-


भगवान् प्रभाव न जानने वाले असुरी प्रकृति के मनुष्यों की निन्दा करके अब सगुण रूप की भक्ति का तत्त्व समझाने के लिये भगवान् के प्रभाव को जानने वाले, दैवीय प्रकृति के आश्रित, उच्च श्रेणी के अनन्य भक्तों के लक्षण बतलाते हैं-


महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिता: ।
भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम् ।।13।।



परंतु हे कुन्ती[1] पुत्र ! दैवीय प्रकृति के आश्रित महात्मा जन मुझ को सब भूतों का सनातन कारण और नाशरहित अक्षर स्वरूप जानकर अनन्य मन से युक्त होकर निरन्तर भजते हैं ।।13।।

On the other hand, Arjuna, great souls who have embraced the divine nature, knowing me as the prime source of all lives and the imperishable eternal, worship me constantly with none else in mind. (13)


तु = परन्तु ; पार्थ = हे कुन्तीपुत्र ; दैवीम् = दैवी ; प्रकृतिम् = प्रकृति के ; आश्रिता: = आश्रित हुए ; महात्मान: = जो महात्माजन हैं (वे तो) ; माम् = मेरे को ; भूतादिम् = सब भूतों का सनातन कारण ; अव्ययम् = नाशरहित अक्षरस्वरूप ; ज्ञात्वा = जानकर ; अनन्यमनस: = अनन्य मन से युक्त ; (सन्त:) = हुए ; भजन्ति = निरन्तर भजते हैं ;



अध्याय नौ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-9

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ये वसुदेवजी की बहन और भगवान श्रीकृष्ण की बुआ थीं। महाभारत में महाराज पाण्डु की ये पत्नी थीं।

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