गीता 9:18

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गीता अध्याय-9 श्लोक-18 / Gita Chapter-9 Verse-18

गतिर्भर्ता प्रभु: साक्षी निवास: शरणं सुहृत् ।
प्रभव: प्रलय: स्थानं निधानं बीजमव्ययम् ।।18।।



प्राप्त होने योग्य परम धाम, भरण-पोषण करने वाला, सबका स्वामी, शुभाशुभ का देखने वाला, सबका वासस्थान, शरण लेने योग्य, प्रत्युपकार न चाहकर हित करने वाला, सबकी उत्पत्ति –प्रलय का हेतु, स्थिति का आधार, निधान और अविनाशी कारण भी मैं ही हूँ ।।18।।

I am the supreme goal, supporter, lord, witness, abode, refuge, wellwisher seeking no return, origin and end, resting-place, storehouse (to which all beings return at the time of universal desturction), and imperishable seed. (18)


गति: = प्राप्त होने योग्य (तथा) ; भर्ता = भरण पोषण करने वाला ; निवास: = सबका वासस्थान (और) ; शरणम् = शरण लेने योग्य (तथा) ; सुहृत् = प्रति उपकार न चाहकर हित करने वाला (और) ; प्रभव: = उत्पत्ति ; प्रभु: = सबका स्वामी ; साक्षी = शुभाशुभ का देखने वाला ; प्रलय: = प्रलयरूप (तथा) ; स्थानम् = सबका आधार ; निधानम् = निधान (और) ; अव्ययम् = अविनाशी ; बीजम् = कारण (भी) ; (अहम् एव) = मैं ही हूं ;



अध्याय नौ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-9

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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