"गीता 4:3": अवतरणों में अंतर
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उपर्युक्त वर्णन से मनुष्य को स्वाभाविक ही यह शंका हो सकती है कि भगवान् < | उपर्युक्त वर्णन से मनुष्य को स्वाभाविक ही यह शंका हो सकती है कि भगवान् [[श्रीकृष्ण]]<ref>'गीता' कृष्ण द्वारा [[अर्जुन]] को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान [[विष्णु]] के [[अवतार]] माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे [[भारत]] में किसी न किसी रूप में की जाती है।</ref> तो अभी [[द्वापर युग]]<ref>यह चार युगों में तीसरा युग है। इसकी अवधि [[पुराण|पुराणों]] में चार लाख चौसठ हज़ार वर्ष मानी गई है।</ref> में प्रकट हुए हैं और [[सूर्य देव|सूर्य]]<ref>सूर्य [[कश्यप|महर्षि कश्यप]] के पुत्र हैं। वे कश्यप की पत्नी [[अदिति]] के गर्भ से उत्पन्न हुए।</ref>, [[वैवस्वत मनु|मनु]] एवं [[इक्ष्वाकु]]<ref>इक्ष्वाकु [[अयोध्या]] के राजा थे, इन्होंने ही अयोध्या में [[कोशल]] राज्य की स्थापना की थी।</ref> बहुत पहले हो चुके है; तब इन्होंने इस योग का उपदेश सूर्य के प्रति कैसे दिया ? अतएव इसके समाधान के साथ ही भगवान् के अवतार-तत्त्व को भली प्रकार समझने की इच्छा से [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> पूछते हैं- | ||
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तू मेरा भक्त और प्रिय सखा है, इसलिये यह वही पुरातन योग आज मैंने तुझको कहा है; क्योंकि यह बड़ा ही उत्तम रहस्य है अर्थात् गुप्त रखने योग्य विषय है ।।3।। | तू मेरा [[भक्त]] और प्रिय सखा है, इसलिये यह वही पुरातन योग आज मैंने तुझको कहा है; क्योंकि यह बड़ा ही उत्तम रहस्य है अर्थात् गुप्त रखने योग्य विषय है ।।3।। | ||
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11:27, 4 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-4 श्लोक-3 / Gita Chapter-4 Verse-3
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख |
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