"गीता 4:9": अवतरणों में अंतर
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हे < | हे [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> ! मेरे जन्म और कर्म दिव्य अर्थात् निर्मल और अलौकिक हैं- इस प्रकार जो मनुष्य तत्त्व से जान लेता है, वह शरीर को त्यागकर फिर जन्म को प्राप्त नहीं होता, किंतु मुझे ही प्राप्त होता है ।।9।। | ||
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अर्जुन = हे अर्जुन; मे = मेरा (वह ); जन्म = जन्म; च = और; कर्म = कर्म; दिव्यम् = दिव्य अर्थात् अलौकिक है; एवम् = इस प्रकार; य: = जो पुरुष; तत्वत: = | अर्जुन = हे अर्जुन; मे = मेरा (वह ); जन्म = जन्म; च = और; कर्म = कर्म; दिव्यम् = दिव्य अर्थात् अलौकिक है; एवम् = इस प्रकार; य: = जो पुरुष; तत्वत: = तत्त्व से; | ||
वेत्ति = जानता है; स: = वह; देहम् = शरीर को; त्यक्त्वा = त्यागकर; पुन: = फिर; जन्म = जन्म को; न = नहीं; एति = प्राप्त होता है(किन्तु) माम् = मुझे (ही); एति = प्राप्त होता है। | वेत्ति = जानता है; स: = वह; देहम् = शरीर को; त्यक्त्वा = त्यागकर; पुन: = फिर; जन्म = जन्म को; न = नहीं; एति = प्राप्त होता है(किन्तु) माम् = मुझे (ही); एति = प्राप्त होता है। | ||
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11:56, 4 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-4 श्लोक-9 / Gita Chapter-4 Verse-9
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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