"गीता 9:30": अवतरणों में अंतर
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भगवान् भजन करने वालों में अनासक्तभाव प्रदर्शित करते हुए अब अगले दो श्लोकों में दुराचारी को भी शाश्वत शान्ति प्राप्त होने की घोषणा करके अपनी भक्ति की विशेष महिमा दिखलाते हैं- | भगवान् भजन करने वालों में अनासक्तभाव प्रदर्शित करते हुए अब अगले दो [[श्लोक|श्लोकों]] में दुराचारी को भी शाश्वत शान्ति प्राप्त होने की घोषणा करके अपनी भक्ति की विशेष महिमा दिखलाते हैं- | ||
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यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा भक्त होकर मुझको भजता है तो वह साधु ही मानने योग्य है; क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला | यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा [[भक्त]] होकर मुझको भजता है तो वह [[साधु]] ही मानने योग्य है; क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है। अर्थात् उसने भली-भाँति निश्चय कर लिया है कि परमेश्वर भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है ।।30।। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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11:22, 5 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-9 श्लोक-30 / Gita Chapter-9 Verse-30
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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