"गीता 4:27": अवतरणों में अंतर

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इस प्रकार समाधियोग के साधन को [[यज्ञ]] का रूप देकर अब अगले [[श्लोक]] में द्रव्य यज्ञ, तपोयज्ञ, योग यज्ञ और स्वाध्याय रूप ज्ञान यज्ञ का संक्षेप में वर्णन करते हैं-
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दूसरे योगीजन इन्द्रियों की सम्पूर्ण क्रियाओं  को ज्ञान से प्रकाशित आत्म-संयम योग रूप अग्नि में हवन किया करते हैं ।।27।।  
दूसरे योगीजन [[इन्द्रियाँ|इन्द्रियों]] की सम्पूर्ण क्रियाओं  को ज्ञान से प्रकाशित आत्म-संयम योग रूप [[अग्नि]] में हवन किया करते हैं ।।27।।  


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12:37, 4 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

गीता अध्याय-4 श्लोक-27 / Gita Chapter-4 Verse-27

प्रसंग-


इस प्रकार समाधियोग के साधन को यज्ञ का रूप देकर अब अगले श्लोक में द्रव्य यज्ञ, तपोयज्ञ, योग यज्ञ और स्वाध्याय रूप ज्ञान यज्ञ का संक्षेप में वर्णन करते हैं-


सर्वाणीन्द्रियकर्माणि प्राणकर्माणि चापरे ।
आत्मसंयमयोगाग्नौ जुहृति ज्ञानदीपिते ।।27।।




दूसरे योगीजन इन्द्रियों की सम्पूर्ण क्रियाओं को ज्ञान से प्रकाशित आत्म-संयम योग रूप अग्नि में हवन किया करते हैं ।।27।।


Other sacrifice all the functions of their senses and the functions of the vital airs into the fire of yoga in the shape of self-control, kindled by wisdom.(27)


अपरे = दूसरे योगीजन; सर्वाणि =संपूर्ण; इन्द्रियकर्माणि = इन्द्रियों की चेष्टाओं को; प्राणकर्माणि = प्राणों के व्यापार को; ज्ञानदीपिते = ज्ञान से प्रकाशित हुई; आत्मसंयम = परमात्मा में स्थिति रूप योगान्गि में



अध्याय चार श्लोक संख्या
Verses- Chapter-4

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29, 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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