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गीता अध्याय-8 श्लोक-19 / Gita Chapter-8 Verse-19

प्रसंग-


यद्यपि <balloon link="ब्रह्मा " title="सर्वश्रेष्ठ पौराणिक त्रिदेवों में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव की गणना होती है। इनमें ब्रह्मा का नाम पहले आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य सृष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">ब्रह्मा</balloon> की रात्रि के आरम्भ में समस्त भूत अव्यक्त में लीन हो जाते हैं, तथापि जब तक वे परम पुरुष परमेश्वर को प्राप्त नहीं होते, तब तक उनका पुनर्जन्म पिंड नहीं छूटता, वे आवागमन के चक्कर में घूमते ही रहते हैं । इसी भाव को दिखलाने के लिये भगवान् कहते हैं –


भूतग्राम: स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते ।
रात्र्यागमेऽवश: पार्थ प्रभवत्यहरागमे ।।19।।



हे <balloon title="पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।" style="color:green">पार्थ</balloon> ! वहीं यह भूत समुदाय उत्पन्न हो- होकर प्रकृति के वश में हुआ रात्रि के प्रवेश काल में लीन होता है और दिन के प्रवेश काल में फिर उत्पन्न होता है ।।19।।

arjuna, this multitude of beings, being born again and again, is dissolved under compulsion of its nature at the coming of the cosmic night, and rises again at the commencement of the cosmic day. (19)


स: = वह ; एव = ही ; अयम् = यह ; भूतग्राम: = भूतसमुदाय ; भूत्वा = उत्पन्न हो होकर ; अवश: = प्रकृति के वश में हुआ ; रात्र्याग में = रात्रि के प्रवेशकाल में ; प्रलीयते = लय होता है (और) ; अहरागमें = दिन के प्रवेशकाल में (फिर) ; प्रभवति = उत्पन्न होता है ; पार्थ = हे अर्जुन



अध्याय आठ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-8

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)