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05:56, 14 जून 2011 का अवतरण

गीता अध्याय-8 श्लोक-27 / Gita Chapter-8 Verse-27

प्रसंग-


अब उन दोनों मार्गों को जानने वाले योगी की प्रशंसा करके अर्जुन को योगी बनने के लिये कहते हैं-


नैते सृती पार्थ जानन्योगी मुह्राति कश्चन ।
तस्मात्सर्वेषु कालेषु योगयुक्तो भवार्जुन ।।27।।



हे <balloon title="पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।" style="color:green">पार्थ</balloon> ! इस प्रकार इन दोनों मार्गों को तत्त्व से जानकर कोई भी योगी मोहित नहीं होता । इस कारण हे <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर में जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! तू सब काल में समबुद्धि रूप योग से युक्त हो अर्थात् निरन्तर मेरी प्राप्ति के लिये साधन करने वाला हो ।।27।।

The devotees who know these two paths, O Arjuna, are never bewildered. Therefore be always fixed in devotion. (27)


पार्थ = हे पार्थ (इस प्रकार) ; एते = इन दोनों ; सृती = मार्गों को ; आनन् = तत्त्व से जानता हुआ ; कश्र्चन = कोई भी ; योगी = योगी ; न = मुह्मति = मोहित नहीं होता है ; तस्मात् = इस कारण ; अर्जुन = हे अर्जुन (तूं) ; सर्वेषु = सब ; कालेषु = काल में ; योगयुक्त: = समत्वबुद्धिरूप योग से युक्त ; भव = हो



अध्याय आठ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-8

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)