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गीता अध्याय-9 श्लोक-31 / Gita Chapter-9 Verse-31

क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छार्न्ति निगच्छति ।
कौन्तेय प्रति जानीहि न मे भक्त: प्रणश्यति ।।31।।



वह शीघ्र ही धर्मात्मा हो जाता है और सदा रहने वाली परम शान्ति को प्राप्त होता है । हे <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! तू निश्चयपूर्वक सत्य जान कि मेरा भक्त नष्ट नहीं होता ।।31।।

Speedily be becomes virtuous and secures lasting peace. Know it for certain. Arjuna, that my devotee never falls. (31)


क्षिप्रम् = शीघ्र ही; भवति = हो जाता है(और); शश्वत् = सदा रहनेवाली; शान्तिम् = परमशान्ति को; निगच्छति = प्राप्त होता है; कौन्तेय = हे अर्जुन (तूं); प्रति = निश्चयपूर्वक सत्य; जानीहि = जान(कि); मे = मेरा; न प्रणश्यति = नष्ट नहीं होता ;



अध्याय नौ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-9

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)