"गीता 8:12-13": अवतरणों में अंतर
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पूर्व श्लोक में जिस विषय का वर्णन करने की प्रतिज्ञा की थी, अब दो श्लोक में उसी का वर्णन करते हैं- | पूर्व [[श्लोक]] में जिस विषय का वर्णन करने की प्रतिज्ञा की थी, अब दो श्लोक में उसी का वर्णन करते हैं- | ||
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सब [[इन्द्रियाँ]] के द्वारों को रोककर तथा मन को हृद्देश में स्थिर करके, फिर उस जीते हुए मन के द्वारा प्राण को मस्तक में स्थापित करके, परमात्म संबंधी योगधारणा में स्थित होकर जो पुरुष 'ऊँ' इस एक अक्षर रूप ब्रह्म का चिन्तन करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है , वह पुरुष परमगति को प्राप्त होता है ।।12-13।। | सब [[इन्द्रियाँ]] के द्वारों को रोककर तथा मन को हृद्देश में स्थिर करके, फिर उस जीते हुए मन के द्वारा प्राण को मस्तक में स्थापित करके, परमात्म संबंधी योगधारणा में स्थित होकर जो पुरुष 'ऊँ' इस एक अक्षर रूप ब्रह्म का चिन्तन करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है , वह पुरुष परमगति को प्राप्त होता है ।।12-13।। | ||
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09:06, 5 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-8 श्लोक-12, 13 / Gita Chapter-8 Verse-12, 13
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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