"गीता 9:11": अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "{{गीता2}}" to "{{प्रचार}} {{गीता2}}") |
No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
<table class="gita" width="100%" align="left"> | <table class="gita" width="100%" align="left"> | ||
<tr> | <tr> | ||
पंक्ति 9: | पंक्ति 8: | ||
'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
---- | ---- | ||
अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार विज्ञान सहित ज्ञान का वर्णन करते हुए भगवान् ने चौथे से छठे श्लोक तक प्रभाव सहित सगुण-निराकार स्वरूप का तत्त्व | अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार विज्ञान सहित ज्ञान का वर्णन करते हुए भगवान् ने चौथे से छठे [[श्लोक]] तक प्रभाव सहित सगुण-निराकार स्वरूप का तत्त्व समझाया। फिर सातवें से दसवें श्लोक तक सृष्टि- रचनादि समस्त कर्मों में अपनी असंगता और निर्विकारता दिखलाकर उन कर्मों की दिव्यता का तत्त्व बतलाया। अब अपने सगुण-साकार रूप का महत्त्व, उसकी [[भक्त]] का प्रकार और उसके गुण और प्रभाव का तत्त्व समझाने के लिये पहले दो श्लोकों में उसके प्रभाव को न जानने वाले [[असुर]]-प्रकृति के मनुष्यों की निन्दा करते हैं- | ||
---- | ---- | ||
<div align="center"> | <div align="center"> | ||
पंक्ति 56: | पंक्ति 55: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td> | <td> | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
<references/> | |||
==संबंधित लेख== | |||
{{गीता2}} | {{गीता2}} | ||
</td> | </td> |
10:20, 5 जनवरी 2013 का अवतरण
गीता अध्याय-9 श्लोक-11 / Gita Chapter-9 Verse-11
|
||||
|
||||
|
||||
|
||||
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
||||