"गीता 9:13": अवतरणों में अंतर
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भगवान् प्रभाव न जानने वाले असुरी प्रकृति के मनुष्यों की निन्दा करके अब सगुण रूप की भक्ति का तत्त्व समझाने के लिये भगवान् के प्रभाव को जानने वाले, दैवीय प्रकृति के आश्रित, उच्च श्रेणी के अनन्य भक्तों के लक्षण बतलाते हैं- | भगवान् प्रभाव न जानने वाले असुरी प्रकृति के मनुष्यों की निन्दा करके अब सगुण रूप की [[भक्ति]] का तत्त्व समझाने के लिये भगवान् के प्रभाव को जानने वाले, दैवीय प्रकृति के आश्रित, उच्च श्रेणी के अनन्य [[भक्त|भक्तों]] के लक्षण बतलाते हैं- | ||
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परंतु हे < | परंतु हे [[कुन्ती]]<ref>ये [[वसुदेव|वसुदेवजी]] की बहन और भगवान [[श्रीकृष्ण]] की बुआ थीं। [[महाभारत]] में महाराज [[पाण्डु]] की ये पत्नी थीं।</ref> पुत्र ! दैवीय प्रकृति के आश्रित महात्मा जन मुझ को सब भूतों का सनातन कारण और नाशरहित अक्षर स्वरूप जानकर अनन्य मन से युक्त होकर निरन्तर भजते हैं ।।13।। | ||
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On the other hand, Arjuna, great souls who have embraced the divine nature, knowing me as the prime source of all lives and the imperishable eternal, worship me constantly with none else in mind. (13) | On the other hand, Arjuna, great souls who have embraced the divine nature, knowing me as the prime source of all lives and the imperishable eternal, worship me constantly with none else in mind. (13) | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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10:21, 5 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-9 श्लोक-13 / Gita Chapter-9 Verse-13
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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