"गीता 4:7": अवतरणों में अंतर
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हे भारत<ref>पार्थ, भारत, धनज्जय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी [[अर्जुन]] के सम्बोधन है।</ref> ! जब-जब [[धर्म]] की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ | हे भारत<ref>पार्थ, भारत, धनज्जय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी [[अर्जुन]] के सम्बोधन है।</ref> ! जब-जब [[धर्म]] की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात् साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ ।।7।। | ||
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भारत = हे भारत; यदा = जब; यदा = जब; धर्मस्य = धर्म की; ग्लानि: = हानि(और ); अधर्मस्य = अधर्म की; अभ्युत्थानम् = वृद्वि; भवति =होती है; तदा = तब तब; हि = ही; अहम् = मैं; आत्मानम् = अपने रूप को; सृजामि = रचना हूं | भारत = हे भारत; यदा = जब; यदा = जब; धर्मस्य = धर्म की; ग्लानि: = हानि(और ); अधर्मस्य = अधर्म की; अभ्युत्थानम् = वृद्वि; भवति =होती है; तदा = तब तब; हि = ही; अहम् = मैं; आत्मानम् = अपने रूप को; सृजामि = रचना हूं अर्थात् प्रकट करता हूं। | ||
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07:47, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-4 श्लोक-7 / Gita Chapter-4 Verse-7
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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