गीता 8:24

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Ashwani Bhatia (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:26, 21 मार्च 2010 का अवतरण (Text replace - "<td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>" to "<td> {{गीता2}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td>")
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

गीता अध्याय-8 श्लोक-24 / Gita Chapter-8 Verse-24

प्रसंग-


पूर्व श्लोक में जिन दो मार्गों का वर्णन करने की प्रतिज्ञा की गयी, उनमें से जिस मार्ग से गये हुए साधक वापस नहीं लौटते, उनका वर्णन पहले किया जाता है-


अग्निज्र्योतिरह: शुक्ल: षण्मासा उत्तरायणम् ।
यत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्रा ब्रह्राविदो जना: ।।24।।



जिस मार्ग में ज्योतिर्मय अग्नि अभिमानी देवता है, दिन का अभिमानी देवता है, शुक्ल पक्ष का अभिमानी देवता है और उत्तरायण के छ: महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मरकर गये हुए ब्रह्रावेत्ता योगीजन उपर्युक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले जाये जाकर ब्रह्रा को प्राप्त होते हैं ।।24।।

Those who know the Supreme Brahman pass away from the world during the influence of the fiery god, in the light, at an auspicious moment, during the fortnight of the moon and the six months when the sun travels in the north. (24)


ज्योति: = अग्नि अभिमानी देवता है (और) ; अह: = दिनका अभिमानी देवता है (तथा) ; तत्र = उस मार्ग में ; प्रयाता: = मरकर गये हुए ; ब्रह्मविद: = ब्रह्मवेत्ता ; जना: = योगीजन ; शुक्क: = शुक्कपक्षका अभिमानी देवता है (और) ; षण्मासा: उत्तरायणम् = उत्तरायण के छ महीनों का अभिमानी देवता हैं (उपरोक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले गये हुए) ; ब्रह्म = ब्रह्म को ; गच्छन्ति = प्राप्त होते हैं ;



अध्याय आठ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-8

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)