गीता 4:34

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:00, 17 जनवरी 2011 का अवतरण (Text replace - "तत्व " to "तत्त्व ")
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

गीता अध्याय-4 श्लोक-34 / Gita Chapter-4 Verse-34


तद्विद्वि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया ।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिन: ।।34।।




उस ज्ञान को तू तत्त्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर समझ, उनको भली-भाँति दण्डवत् प्रणाम् करने से, उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्मा तत्त्व को भली-भाँति जानने वाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्त्व ज्ञान का उपदेश करेंगे ।।34।।


Understand the true nature of that knowledge by approaching illumined soul. If you prostrate at their feet, render them service, and question them with an open and guileless heart, those wise seers of Truth will instruct you in that knowledge.(34)


प्रणिपातेन = भली प्रकार दण्डवत् प्रणाम (तथा);सेवया= सेवा(और); परिप्रश्नेन= भाव से किये हुए प्रश्न द्वारा; तत् = उस ज्ञान को; विद्वि = जान; ते = वे; तत्वदर्शिन: = मर्म को जानने वाले; ज्ञानिन: = ज्ञानीजन (तुझे उस); ज्ञानम् = ज्ञान का; उपदेक्ष्यन्ति = उपदेश करेंगे।



अध्याय चार श्लोक संख्या
Verses- Chapter-4

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29, 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)