गीता 8:5

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गीता अध्याय-8 श्लोक-5 / Gita Chapter-8 Verse-5

प्रसंग-


इस प्रकार <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> के छ: प्रश्नों का उत्तर देकर अब भगवान् अन्तकाल संबंधी सातवें प्रश्न का उत्तर आरम्भ करते हैं-


अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् ।
य: प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशय: ।।5।।



जो पुरुष अन्तकाल में भी मुझको ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है, वह मेरे साक्षात् स्वरूप को प्राप्त होता है- उसमें कुछ भी संशय नहीं है ।।5।।

He who departs from the body, thinking of me alone even at the time of death, attains my state; there is no doubt about it. (5)


च = और ; य: = जो पुरुष ; अन्तकाले = अन्तकाल में ; माम् = मेरे को ; एव = ही ;स्मरन् = स्मरण करता हुआ ; कलेवरम् = शरीर को ; मुक्त्वा = त्याग कर ; प्रयाति = जाता है ; स: = वह ; मभ्दावम् = मेरे (साक्षात्) स्वरूप को ; याति = प्राप्त होता है ; अत्र = इसमें (कुछ भी) ; संशय: = संशय ; न = नहीं ; अस्ति = है



अध्याय आठ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-8

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)