इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला नि:संदेह कुछ भी नहीं है। उस ज्ञान को कितने ही काल से कर्मयोग के द्वारा शुद्धान्त:करण हुआ मनुष्य अपने-आप ही आत्मा में पा लेता है ।।38।।
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On earth there is no purifier as great as knowledge, he who has attained purity of heart through a prolonged practice of Karmayoga automatically sees the light of truth in the self in course of time.(38)
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