हे पार्थ[1] ! जिस परमात्मा के अन्तर्गत सर्वभूत हैं और जिस सच्चिदानन्दघन परमात्मा से यह सब जगत् परिपूर्ण है, वह सनातन अव्यक्त परम पुरुष तो अनन्य भक्ति से ही प्राप्त होने योग्य है ।।22।।
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Arjuna, that eternal unmanifest supreme purusa in whom all beings reside, and by whom all this is pervaded, is attainable only through exclusive devotion. (22)
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