हे भारत[1] ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात् साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ ।।7।।
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Whenever and wherever there is a decline in religious practice, O descendant of Bharata, and a predominant rise of irreligion at that time I descend Myself. (7).
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