कोई एक महापुरुष ही इस आत्मा को आश्चर्य की भाँति देखता है और वैसे ही दूसरा कोई महापुरुष ही इसके तत्त्व का आश्चर्य की भाँति वर्णन करता है तथा दूसरा कोई अधिकारी पुरुष ही इसे आश्चर्य की भाँति सुनता है और कोई-कोई तो सुनकर भी इसको नहीं जानता ।।29।।
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Hardly anone perceives this soul as marvelous, scarce another likewise speaks thereof marvelous, and scarce another hears of it as marvelous; while there are some who know it not even on hearing of it.(29)
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