"गीता 7:28": अवतरणों में अंतर

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परंतु निष्काम भाव से श्रेष्ठ कर्मों का आचरण करने वाले जिन पुरुषों का पाप नष्ट हो गया है, वे राग-द्वेषजनित द्वन्द्वरूप मोह से मुक्त दृढनिश्चयी भक्त मुझ को सब प्रकार से भजते हैं ।।28।
परंतु निष्काम भाव से श्रेष्ठ कर्मों का आचरण करने वाले जिन पुरुषों का पाप नष्ट हो गया है, वे राग-द्वेषजनित द्वन्द्वरूप मोह से मुक्त दृढनिश्चयी [[भक्त]] मुझ को सब प्रकार से भजते हैं ।।28।


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08:17, 5 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

गीता अध्याय-7 श्लोक-28 / Gita Chapter-7 Verse-28

प्रसंग-


अब भगवान् का भजन करने वालों के भजन का प्रकार और फल बतलाते हैं-


येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्डकर्मणाम् ।
ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रता: ।।28।।



परंतु निष्काम भाव से श्रेष्ठ कर्मों का आचरण करने वाले जिन पुरुषों का पाप नष्ट हो गया है, वे राग-द्वेषजनित द्वन्द्वरूप मोह से मुक्त दृढनिश्चयी भक्त मुझ को सब प्रकार से भजते हैं ।।28।

But those men of virtuous deeds whose sins have come to an end, being freed from delusion in the shape of pairs of opposites born of attraction and repulsion, worship me with a firm resolve in every way. (28)


तु = परन्तु ; पुण्यकर्मणाम् = (निष्कामभाव से) श्रेष्ठ कर्मों का आचरण करने वाले ; येषाम् = जिन ; जनानाम् = पुरुषों का ; पापम् = पाप ; अन्तगतम् = नष्ट हो गया है ; ते = वे ; द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता: = राग द्वेषादि द्वन्द्व रूप मोह से मुक्त हुए (और) ; द्य्ढव्रता: = द्य्ढनिश्र्चयवाले पुरुष ; माम् = मेरे को (सब प्रकार से) ; भजन्ते = भजते हैं ;



अध्याय सात श्लोक संख्या
Verses- Chapter-7

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29, 30

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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