"गीता 9:27": अवतरणों में अंतर
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यदि ऐसी ही बात है तो मुझे क्या करना चाहिए, इस जिज्ञासा पर भगवान् < | यदि ऐसी ही बात है तो मुझे क्या करना चाहिए, इस जिज्ञासा पर भगवान् [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> को उसका कर्तव्य बतलाते हैं- | ||
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हे अर्जुन ! तू जो कर्म करता है, जो खाता है, जो हवन करता है, जो दान देता है और जो तप करता है, वह सब मेरे अर्पण कर ।।27।। | हे [[अर्जुन]] ! तू जो कर्म करता है, जो खाता है, जो हवन करता है, जो दान देता है और जो तप करता है, वह सब मेरे अर्पण कर ।।27।। | ||
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11:08, 5 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-9 श्लोक-27 / Gita Chapter-9 Verse-27
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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