"गीता 2:51": अवतरणों में अंतर
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भगवान् ने कर्मयोग के आचरण द्वारा अनामय पद की प्राप्ति बतलायी; इस पर < | भगवान् ने कर्मयोग के आचरण द्वारा अनामय पद की प्राप्ति बतलायी; इस पर [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> को यह जिज्ञासा हो सकती है कि अनामय परम पद की प्राप्ति मुझे कब और कैसे होगी ? इसके लिये भगवान् दो [[श्लोक|श्लोकों]] में कहते हैं- | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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08:36, 4 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-2 श्लोक-51 / Gita Chapter-2 Verse-51
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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