"गीता 9:26": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (1 अवतरण)
छो (Text replacement - " महान " to " महान् ")
 
(3 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<table class="gita" width="100%" align="left">
<table class="gita" width="100%" align="left">
<tr>
<tr>
पंक्ति 9: पंक्ति 8:
'''प्रसंग-'''
'''प्रसंग-'''
----
----
भगवान् की भक्ति का भगवत्प्राप्ति रूप महान फल होने पर भी उसके साधन में कोई कठिनता नहीं हैं, बल्कि उसका साधन बहुत ही सुगम है- यह बात दिखलाने के लिये भगवान् कहते हैं-
भगवान् की [[भक्ति]] का भगवत्प्राप्ति रूप महान् फल होने पर भी उसके साधन में कोई कठिनता नहीं हैं, बल्कि उसका साधन बहुत ही सुगम है- यह बात दिखलाने के लिये भगवान् कहते हैं-
----
----
<div align="center">
<div align="center">
पंक्ति 22: पंक्ति 21:
|-
|-
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
जो कोई भक्त मेरे लिये प्रेम से पत्र (पत्ती), पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र-पुष्पादि मैं सगुण रूप से प्रकट होकर प्रीति सहित खाता हूँ ।।26।।  
जो कोई [[भक्त]] मेरे लिये प्रेम से पत्र (पत्ती), [[पुष्प]], [[फल]], [[जल]] आदि अर्पण करता है, उस शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र-पुष्पादि मैं सगुण रूप से प्रकट होकर प्रीति सहित खाता हूँ ।।26।।
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
Whosoever offers to me with love a leaf, a flower, a fruit or even water, I appear in person before that disinterested devotee of sinless mind, and delightfully partake of that article offered by him with love.  (26)  
Whosoever offers to me with love a leaf, a flower, a fruit or even water, I appear in person before that disinterested devotee of sinless mind, and delightfully partake of that article offered by him with love.  (26)  
पंक्ति 56: पंक्ति 54:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{महाभारत}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
{{गीता2}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{गीता2}}
{{महाभारत}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>

14:08, 30 जून 2017 के समय का अवतरण

गीता अध्याय-9 श्लोक-26 / Gita Chapter-9 Verse-26

प्रसंग-


भगवान् की भक्ति का भगवत्प्राप्ति रूप महान् फल होने पर भी उसके साधन में कोई कठिनता नहीं हैं, बल्कि उसका साधन बहुत ही सुगम है- यह बात दिखलाने के लिये भगवान् कहते हैं-


पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति ।
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मन: ।।26।।



जो कोई भक्त मेरे लिये प्रेम से पत्र (पत्ती), पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र-पुष्पादि मैं सगुण रूप से प्रकट होकर प्रीति सहित खाता हूँ ।।26।।

Whosoever offers to me with love a leaf, a flower, a fruit or even water, I appear in person before that disinterested devotee of sinless mind, and delightfully partake of that article offered by him with love. (26)


पत्रम् = पत्र; पुष्पम् = पुष्प; तोयम् = जल(इत्यादि); य: = जो (कोई भक्त); मे = मेरे लिये; भक्त्या = प्रेम से; प्रयच्छति = अर्पण करता है; प्रयतात्मन: = बुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का; भक्तयुपहृतम् = प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ; तत् = वह(पत्र पुष्पादिक); अहम् = मैं (सगुणरूपसे प्रकट होकर प्रीतिसहित); अश्रामि = खाता हूं ;



अध्याय नौ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-9

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख