"गीता 2:29": अवतरणों में अंतर
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इस प्रकार आत्म | इस प्रकार आत्म तत्त्व के दर्शन, वर्णन और श्रवण की अलौकिकता और दुर्लभता का प्रतिपादन करके अब, 'आत्मा नित्य की अवध्य है; अत: किसी भी प्राणी के लिये शोक करना उचित नहीं है'- यह बतलाते हुए भगवान् सांख्य योग के प्रकरण का उपसंहार करते हैं| | ||
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कोई एक महापुरुष ही इस आत्मा को आश्चर्य की भाँति देखता है और वैसे ही दूसरा कोई महापुरुष ही इसके | कोई एक महापुरुष ही इस आत्मा को आश्चर्य की भाँति देखता है और वैसे ही दूसरा कोई महापुरुष ही इसके तत्त्व का आश्चर्य की भाँति वर्णन करता है तथा दूसरा कोई अधिकारी पुरुष ही इसे आश्चर्य की भाँति सुनता है और कोई-कोई तो सुनकर भी इसको नहीं जानता ।।29।। | ||
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06:59, 17 जनवरी 2011 का अवतरण
गीता अध्याय-2 श्लोक-29 / Gita Chapter-2 Verse-29
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