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05:49, 14 जून 2011 का अवतरण

गीता अध्याय-7 श्लोक-19 / Gita Chapter-7 Verse-19

प्रसंग-


पंद्रहवें श्लोंक में आसुरी प्रकृति के दुष्कृती लोगों के भगवान् को न भजने की और सोलहवें से उन्नीसवें तक सुकृती पुरुषों के द्वारा भगवान् को भजने की बात कही गयी । अब भगवान् उनकी बात कहते हैं जो सुकृती होने पर भी कामना के वश अपनी-अपनी प्रकृति के अनुसार अन्यान्य देवताओं की उपासना करते हैं-


बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते ।
वासुदेव: सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभ: ।।19।।



बहुत जन्मों के अन्त में तत्त्व ज्ञान को प्राप्त पुरुष, सब कुछ वासुदेव ही है- इस प्रकार मुझ को जो भजता है , वह महात्मा अत्यन्त दुर्लभ है ।।19।।

In the very last of all births the enlightened soul worships me, realizing that all this is God. Such a great soul is very rare.(19)


बहूनाम् = बहुत ; अन्ते = अन्त के जन्म में ; ज्ञानवान् = तत्त्वज्ञान को प्राप्त हुआ ज्ञानी ; सर्वम् = सब कुछ ; वासुदेव: = वासुदेव ही है ; जन्मनाम् = जन्मों के ; इति = इस प्रकार ; माम् = मेरे को ; प्रपद्यते = भजता है ; स: = वह ; महात्मा = महात्मा ; सुदुर्लभ: = अति दुर्लभ है



अध्याय सात श्लोक संख्या
Verses- Chapter-7

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29, 30

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)