"गीता 9:14": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (Text replace - '<td> {{गीता अध्याय}} </td>' to '<td> {{गीता अध्याय}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>')
 
छो (1 अवतरण)
(कोई अंतर नहीं)

11:04, 21 मार्च 2010 का अवतरण

गीता अध्याय-9 श्लोक-14 / Gita Chapter-9 Verse-14

प्रसंग-


अब पूर्व श्लोक में वर्णित भगवत्प्रेमी भक्तों के भजन का प्रकार बतलाते हैं-


सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्च दृढव्रता: ।
नमस्यन्तश्च मां भक्त्या नित्ययुक्ता उपासते ।।14।।



वे दृढ़ निश्चय वाले भक्त जन निरन्तर मेरे नाम और गुणों का कीर्तन करते हुए तथा मेरी प्राप्ति के लिये यत्न करते हुए और मुझ को बार-बार प्रणाम करते हुए सदा मेरे ध्यान में युक्त होकर अनन्य प्रेम से मेरी उपासना करते हैं ।।14।।

Constantly chanting my names and glories and striving for my realization , and bowing again and again to me, those devotees of firm resolve, ever united with me through meditation, worship me with single-minded devotion. (14)


द्य्ढव्रता: = द्य्ढनिश्र्चय वाले भक्तजन ; कीर्तयन्त: = मेरे नाम और गुणों का कीर्तन करते हुए ; च = तथा (मेरी प्राप्ति के लिये) ; यतन्त: = यत्न करते हुए ; च = और ; माम् = मेरे को ; सततम् = निरन्तर ; नमस्यन्त: = बारम्बार प्रमाण करते हुए ; नित्ययुक्ता: = सदा मेरे ध्यान में युक्त हुए ; भक्त्या = अनन्य भक्ति से ; माम् = मुझे ; उपासते = उपासते हैं ;



अध्याय नौ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-9

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)