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गीता अध्याय-9 श्लोक-16 / Gita Chapter-9 Verse-16

प्रसंग-


समस्त विश्व की उपासना भगवान् की ही उपासना कैसे है- यह स्पष्ट समझाने के लिये अब चार श्लोकों द्वारा भगवान् इस बात का प्रतिपादन करते हैं कि समस्त जगत् मेरा ही स्वरूप हैं-


अहं क्रतुरहं यज्ञ: स्वधाहमहमौषधम् ।
मन्त्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम् ।।16।।



क्रतु मैं हूँ, यज्ञ मैं हूँ, स्वधा मैं हूँ, औषधि मैं हूँ, मन्त्र मैं हूँ, घृत मैं हूँ, अग्नि मैं हूँ, और हवन रूप क्रिया भी मैं ही हूँ ।।16।।

I am the vedic ritual, I am the sacrifice, I am the offering to the departed; I am the herbage and foodgrains; I am the sacred formula, I am the clarified butter, I am the sacred fire, and I am verily the acti of offering oblations into the fire. (16)


क्रतु: = क्रतु अर्थात् श्रौतकर्म ; अहम् = मैं हूं ; यज्ञ: = यज्ञ अर्थात् पच्चमहायज्ञादिक स्मार्तकर्म ; अहम् = मैं हूं ; स्वधा = स्वधा अर्थात् पितरों के निमित्त दिया जाने वाला अन्न ; अहम् = मैं हूं ; औषधम् = ओषधि अर्थात् सब वनस्पतियां ; अहम् = मैं हूं (एवं) ; मन्त्र: = मन्त्र ; अहम् = मैं हूं ; आज्यम् = घृत ; अहम् = मैं हूं ; अग्नि: = अग्नि ; अहम् = मैं हूं (और) ; हुतम् = हवनरूप क्रिया (भी) ; अहम् = मैं ; एव = ही हूं ;



अध्याय नौ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-9

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)