"गीता 9:20": अवतरणों में अंतर
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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तेरहवें से पंद्रहवें श्लोक तक अपने सगुण-निर्गुण और विराट् रूप की उपासनाओं का वर्णन करके भगवान् ने उन्नीसवें श्लोक तक समस्त विश्व को अपना बतलाया, | तेरहवें से पंद्रहवें [[श्लोक]] तक अपने सगुण-निर्गुण और विराट् रूप की उपासनाओं का वर्णन करके भगवान् ने उन्नीसवें श्लोक तक समस्त विश्व को अपना बतलाया, समस्त विश्व मेरा ही स्वरूप होने के कारण [[इन्द्र]]<ref>देवताओं के राजा इन्द्र कहलाते हैं। इन्हें [[वर्षा]] का [[देवता]] माना जाता है।</ref> और अन्य देवों की उपासना भी प्रकारान्तर से मेरी ही उपासना है, परंतु ऐसा न जानकर फलासक्ति-पूर्वक पृथक्-पृथक् भाव से उपासना करने वालों को मेरी प्राप्ति न होकर विनाशी फल ही मिलता है। इसी बात को दिखलाने के लिये अब दो श्लोकों में भगवान् उस उपासना का फल सहित वर्णन करते हैं – | ||
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तीनों < | तीनों [[वेद|वेदों]]<ref>वेद [[हिन्दू धर्म]] के प्राचीन पवित्र ग्रंथों का नाम है, इससे वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई।</ref> में विधान किये हुए सकाम कर्मों को करने वाले, सोम रस<ref>[[वेद|वेदों]] में वर्णित सोमरस का पौधा जिसे सोम कहते हैं, जो [[अफ़ग़ानिस्तान]] की पहाड़ियों पर ही पाया जाता है।</ref> को पीने वाले, पाप रहित पुरुष मुझको यज्ञों के द्वारा पूजकर स्वर्ग की प्राप्ति चाहते हैं; वे पुरुष अपने पुण्यों के फलरूप स्वर्गलोक को प्राप्त होकर स्वर्ग में दिव्य [[देवता|देवताओं]] के भोगों को भोगते हैं ।।20।। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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10:39, 5 जनवरी 2013 का अवतरण
गीता अध्याय-9 श्लोक-20 / Gita Chapter-9 Verse-20
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख |
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