"गीता 9:19": अवतरणों में अंतर

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मैं ही सूर्य<ref>सूर्य महर्षि [[कश्यप]] के पुत्र हैं। वे कश्यप की पत्नी [[अदिति]] के गर्भ से उत्पन्न हुए थे।</ref> रूप से तपता हूँ, वर्षा का आकर्षण करता हूँ और उसे बरसाता हूँ। हे [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> !  मैं ही अमृत और मृत्यु हूँ और सत् असत् भी मैं ही हूँ ।।19।।
मैं ही [[सूर्य देव|सूर्य]]<ref>सूर्य महर्षि [[कश्यप]] के पुत्र हैं। वे कश्यप की पत्नी [[अदिति]] के गर्भ से उत्पन्न हुए थे।</ref> रूप से तपता हूँ, वर्षा का आकर्षण करता हूँ और उसे बरसाता हूँ। हे [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> !  मैं ही अमृत और मृत्यु हूँ और सत् असत् भी मैं ही हूँ ।।19।।
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I radiate heat as the sun, and hold back as well as send forth showers, Arjuna. I am immortality as well as death; even so I am being and non-being both.  (19)  
I radiate heat as the sun, and hold back as well as send forth showers, Arjuna. I am immortality as well as death; even so I am being and non-being both.  (19)  

10:41, 5 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

गीता अध्याय-9 श्लोक-19 / Gita Chapter-9 Verse-19

तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्णाम्युत्सृजामि च ।
अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन ।।19।।



मैं ही सूर्य[1] रूप से तपता हूँ, वर्षा का आकर्षण करता हूँ और उसे बरसाता हूँ। हे अर्जुन[2] ! मैं ही अमृत और मृत्यु हूँ और सत् असत् भी मैं ही हूँ ।।19।।

I radiate heat as the sun, and hold back as well as send forth showers, Arjuna. I am immortality as well as death; even so I am being and non-being both. (19)


अहम् = मैं (ही) ; तपामि = सूर्यरूप हुआ तपता हूं (तथा) ; वर्षम् = वर्षाको ; निगृण्हामि = आकर्षण करता हूं ; च = और ; मृत्यु: = मृत्यु (एवं) ; सत् = सत् ; च = और ; च = और ; उत्सृजामि = वर्षाता हूं ; च = और ; अर्जुन = हे अर्जुन ; अहम् = मैं (ही) ; अमृतम् = अमृत ; असत् = असत् (भी) (सब कुछ) ; अहम् = मैं ; एव = ही हूं ;



अध्याय नौ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-9

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सूर्य महर्षि कश्यप के पुत्र हैं। वे कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से उत्पन्न हुए थे।
  2. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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