"गीता 9:34": अवतरणों में अंतर
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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पिछले श्लोकों में भगवान् ने अपने भजन का महत्त्व दिखलाया और अन्त में < | पिछले [[श्लोक|श्लोकों]] में भगवान् ने अपने भजन का महत्त्व दिखलाया और अन्त में [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> को भजन करने के लिये कहा। अतएव अब भगवान् अपने भजन का अर्थात् शरणागति का प्रकार बतलाते हुए अध्याय की समाप्ति करते हैं----- | ||
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'''मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु । '''<br /> | '''मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु । '''<br /> | ||
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मुझमें मनवाला हो, मेरा भक्त बन, मेरा पूजन करने वाला हो, मुझको प्रणाम | मुझमें मनवाला हो, मेरा [[भक्त]] बन, मेरा पूजन करने वाला हो, मुझको प्रणाम कर। इस प्रकार [[आत्मा]] को मुझ में नियुक्त करके मेरे परायण होकर तू मुझको ही प्राप्त होगा ।।34।। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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11:25, 5 जनवरी 2013 का अवतरण
गीता अध्याय-9 श्लोक-34 / Gita Chapter-9 Verse-34
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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