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15:35, 21 मार्च 2010 का अवतरण

गीता अध्याय-9 श्लोक-25 / Gita Chapter-9 Verse-25

प्रसंग-


भगवान् के भक्त आवागमन को प्राप्त नहीं होते और अन्य देवाताओं के उपासक आवागमन को प्राप्त होते हैं, इसका क्या कारण है ? इस जिज्ञासा पर उपास्य के स्वरूप और उपासक के भाव से उपासना के फल में भेद होने का नियम बतलाते हैं-


यान्ति देवव्रता देवान्
पितृन्यान्ति पितृव्रता: ।
भूतानि यान्ति भूतेज्या
यान्ति मद्याजिनोऽपि माम् ।।25।।



देवताओं को पूजने वाले देवताओ को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं, और मेरा पूजन करने वाले भक्त मुझको ही प्राप्त होते हैं । इसीलिये मेरे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता ।।25।।

Those who are vowed to gods to the gods; those who are vowed to the manes reach the manes; those who adore the spirits reach the spirits and those who worship me come to me alone. (That is why my devotees are no longer subject to birth and death). (25)


देवव्रता: = देवताओं को पूजने वाले ; देवान् = देवताओं को ; यान्ति = प्राप्त होते हैं ; पितृव्रता: = पितरों को पूजने वाले ; मद्याजिन: = मेरे भक्त ; माम् = मेरे को ; पितृन् = पितरों को ; यान्ति = प्राप्त होते हैं ; भूतेज्या: = भूतों को पूजने वाले ; भूतानि = भूतों को ; यान्ति = प्राप्त होते हैं (और) ; अपि =ही ; यान्ति = प्राप्त होते हैं ;



अध्याय नौ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-9

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)