फिर इसमें तो कहना ही क्या है, जो पुण्यशील ब्राह्राण तथा राजर्षि भक्तजन मेरी शरण होकर परमगति को प्राप्त होते हैं । इसलिये तू सुखरहित और क्षणभंगुर इस मनुष्य शरीर को प्राप्त होकर निरन्तर मेरा ही भजन कर ।।33।।
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How much more, then, holy Brahmanas and royal sages devoted to me ! therefore, having obtained this joyless and transient human life, constantly worship me. (33)
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