मैं ही सूर्य[1] रूप से तपता हूँ, वर्षा का आकर्षण करता हूँ और उसे बरसाता हूँ। हे अर्जुन[2] ! मैं ही अमृत और मृत्यु हूँ और सत् असत् भी मैं ही हूँ ।।19।।
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I radiate heat as the sun, and hold back as well as send forth showers, Arjuna. I am immortality as well as death; even so I am being and non-being both. (19)
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