"गीता 2:6": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (1 अवतरण)
No edit summary
 
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<table class="gita" width="100%" align="left">
<table class="gita" width="100%" align="left">
<tr>
<tr>
पंक्ति 9: पंक्ति 8:
'''प्रसंग-'''
'''प्रसंग-'''
----
----
इस प्रकार कर्त्तव्य का निर्णय करने में अपनी असमर्थता प्रकट करने के बाद अब <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
इस प्रकार कर्त्तव्य का निर्णय करने में अपनी असमर्थता प्रकट करने के बाद अब [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> भगवान् की शरण ग्रहण करके अपना निश्चित कर्तव्य बतलाने के लिये उनसे प्रार्थना करते हैं-
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> भगवान् की शरण ग्रहण करके अपना निश्चित कर्तव्य बतलाने के लिये उनसे प्रार्थना करते हैं-
----  
----  
<div align="center">
<div align="center">
पंक्ति 27: पंक्ति 25:


----
----
हम यह भी नहीं जानते कि हमारे लिये युद्ध करना और न करना- इन दोनों में से कौन-सा श्रेष्ठ है, अथवा यह भी नहीं जानते कि उन्हें हम जीतेंगे या हमको वे जीतेंगे । और जिन को मारकर हम जीना भी नहीं चाहते, वे ही हमारे आत्मीय <balloon link="धृतराष्ट्र" title="धृतराष्ट्र पाण्डु के बड़े भाई थे । गाँधारी इनकी पत्नी थी और कौरव इनके पुत्र । पाण्डु के बाद हस्तिनापुर के राजा बने
हम यह भी नहीं जानते कि हमारे लिये युद्ध करना और न करना- इन दोनों में से कौन-सा श्रेष्ठ है, अथवा यह भी नहीं जानते कि उन्हें हम जीतेंगे या हमको वे जीतेंगे। और जिन को मारकर हम जीना भी नहीं चाहते, वे ही हमारे आत्मीय [[धृतराष्ट्र]]<ref>धृतराष्ट्र [[पाण्डु]] के बड़े भाई थे। [[गाँधारी]] इनकी पत्नी थी और [[कौरव]] इनके पुत्र। ये पाण्डु के बाद [[हस्तिनापुर]] के राजा बने थे।</ref> के पुत्र हमारे मुक़ाबले में खड़े हैं ।।6।।  
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">धृतराष्ट्र</balloon> के पुत्र हमारे मुक़ाबले में खड़े हैं ।।6।।  


| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
पंक्ति 65: पंक्ति 62:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{महाभारत}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
{{गीता2}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{गीता2}}
{{महाभारत}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>

05:48, 4 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

गीता अध्याय-2 श्लोक-6 / Gita Chapter-2 Verse-6

प्रसंग-


इस प्रकार कर्त्तव्य का निर्णय करने में अपनी असमर्थता प्रकट करने के बाद अब अर्जुन[1] भगवान् की शरण ग्रहण करके अपना निश्चित कर्तव्य बतलाने के लिये उनसे प्रार्थना करते हैं-


न चैतद्विद्म:कतरन्नो गरीयो |
यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु:।
यानेव हत्वा न जिजीविषाम-
स्तेऽवस्थिता:प्रमुखे धार्तराष्ट्रा:।।6।।




हम यह भी नहीं जानते कि हमारे लिये युद्ध करना और न करना- इन दोनों में से कौन-सा श्रेष्ठ है, अथवा यह भी नहीं जानते कि उन्हें हम जीतेंगे या हमको वे जीतेंगे। और जिन को मारकर हम जीना भी नहीं चाहते, वे ही हमारे आत्मीय धृतराष्ट्र[2] के पुत्र हमारे मुक़ाबले में खड़े हैं ।।6।।


We do not even know which is preferable for us- to fight or not to fight; nor do we know whether we shall win or whether they will conquer us. Those very sons of Dhrtarastra, killing whom we do not even wish to live, stand in the enemy ranks. (6)


न = नहीं ; विझ्: = जानते (कि) ; न: = हमारे लिये ; कतरत् =क्या (करना) ; गरीय; =श्रेष्ठ है ; यद्वा = अथवा (यह भी नहीं जानते कि); जयेम = हम जीतेंगे ; यदि वा = या ; न: = हमको ; जयेयु: = वे जीतेंगे (और) ; यान् = जिनको ; हत्वा = मारकर (हम); न जिजीविषाम: = जीना भी नहीं चाहते ; ते = वे ; एव = ही ; धार्तराष्टा: = धृतराष्ट के पुत्र ; प्रमुखे = हमारे सामने ; अवस्थिता: = खडे हैं;



अध्याय दो श्लोक संख्या
Verses- Chapter-2

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 , 43, 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।
  2. धृतराष्ट्र पाण्डु के बड़े भाई थे। गाँधारी इनकी पत्नी थी और कौरव इनके पुत्र। ये पाण्डु के बाद हस्तिनापुर के राजा बने थे।

संबंधित लेख