"गीता 2:63": अवतरणों में अंतर
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इस प्रकार मनसहित [[इन्द्रियाँ]] को वश में न करने वाले मनुष्य के पतन का क्रम बतलाकर अब भगवान् 'स्थितप्रज्ञ योगी कैसे चलता है' इस चौथे प्रश्न का उत्तर आरम्भ करते हुए पहले दो श्लोकों में जिसके मन और इन्द्रियाँ वश में होते हैं, ऐसे साधक द्वारा विषयों में विचरण किये जाने का प्रकार और उसका फल बतलाते हैं- | इस प्रकार मनसहित [[इन्द्रियाँ|इन्द्रियों]] को वश में न करने वाले मनुष्य के पतन का क्रम बतलाकर अब भगवान् 'स्थितप्रज्ञ योगी कैसे चलता है' इस चौथे प्रश्न का उत्तर आरम्भ करते हुए पहले दो [[श्लोक|श्लोकों]] में जिसके मन और इन्द्रियाँ वश में होते हैं, ऐसे साधक द्वारा विषयों में विचरण किये जाने का प्रकार और उसका फल बतलाते हैं- | ||
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08:55, 4 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-2 श्लोक-63 / Gita Chapter-2 Verse-63
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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