"गीता 2:65": अवतरणों में अंतर
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इस प्रकार मन और इन्द्रियों को वश में करके अनासक्त भाव से इन्द्रियों द्वारा व्यवहार करने वाले साधक को सुख शान्ति और स्थितप्रज्ञ-अवस्था प्राप्त होने की बात कहकर अब दो श्लोकों द्वारा इससे विपरीत जिसके मन-इन्द्रिय जीते हुए नहीं हैं, ऐसे विषयासक्त मनुष्य में सुख शान्ति का अभाव दिखलाकर विषयों के संग से उसकी बुद्धि के विचलित हो जाने का प्रकार बतलाते हैं- | इस प्रकार मन और [[इन्द्रियाँ|इन्द्रियों]] को वश में करके अनासक्त भाव से इन्द्रियों द्वारा व्यवहार करने वाले साधक को सुख शान्ति और स्थितप्रज्ञ-अवस्था प्राप्त होने की बात कहकर अब दो [[श्लोक|श्लोकों]] द्वारा इससे विपरीत जिसके मन-इन्द्रिय जीते हुए नहीं हैं, ऐसे विषयासक्त मनुष्य में सुख शान्ति का अभाव दिखलाकर विषयों के संग से उसकी बुद्धि के विचलित हो जाने का प्रकार बतलाते हैं- | ||
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08:56, 4 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-2 श्लोक-65 / Gita Chapter-2 Verse-65
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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