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भगवान् ने ज्ञानी भक्तों में सबको श्रेष्ठ और अत्यन्त प्रिय बतलाया । इस पर यह शंका हो सकती है कि क्या दूसरे भक्त श्रेष्ठ और प्रिय नहीं हैं ? इस पर भगवान् कहते हैं-  
भगवान् ने ज्ञानी [[भक्त|भक्तों]] में सबको श्रेष्ठ और अत्यन्त प्रिय बतलाया। इस पर यह शंका हो सकती है कि क्या दूसरे भक्त श्रेष्ठ और प्रिय नहीं हैं? इस पर भगवान् कहते हैं-  
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उनमें नित्य मुझ में एकीभाव से स्थित अनन्य प्रेम भक्ति वाला भक्त अति उत्तम है, क्योंकि मुझको तत्त्व से जानने वाले ज्ञानी को मैं अत्यन्त प्रिय हूँ और वह ज्ञानी मुझे अत्यन्त प्रिय है ।।17।।
उनमें नित्य मुझ में एकीभाव से स्थित अनन्य प्रेम भक्ति वाला [[भक्त]] अति उत्तम है, क्योंकि मुझको तत्त्व से जानने वाले ज्ञानी को मैं अत्यन्त प्रिय हूँ और वह ज्ञानी मुझे अत्यन्त प्रिय है ।।17।।


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08:08, 5 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

गीता अध्याय-7 श्लोक-17 / Gita Chapter-7 Verse-17

प्रसंग-


भगवान् ने ज्ञानी भक्तों में सबको श्रेष्ठ और अत्यन्त प्रिय बतलाया। इस पर यह शंका हो सकती है कि क्या दूसरे भक्त श्रेष्ठ और प्रिय नहीं हैं? इस पर भगवान् कहते हैं-


तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते ।
प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रिय: ।।17।।



उनमें नित्य मुझ में एकीभाव से स्थित अनन्य प्रेम भक्ति वाला भक्त अति उत्तम है, क्योंकि मुझको तत्त्व से जानने वाले ज्ञानी को मैं अत्यन्त प्रिय हूँ और वह ज्ञानी मुझे अत्यन्त प्रिय है ।।17।।

Of these best is the man of wisdom, ever established in indentity with me and possessed of exclusive devotion. For I am extremely dear to the wise man who knows me in reality, and he is extremely dear to me. (17)


तेषाम् = उनमें (भी) ; नित्ययुक्त: = नित्य मेरे में एकीभाव से स्थित हुआ ; एकभक्ति: = अनन्य प्रेम भक्तिवाला ; ज्ञानी = ज्ञानी ; विशिष्यते = अति उत्तम है ; हि = क्योंकि ; ज्ञानिन: = (मेरे को तत्त्व से जानने वाले) ज्ञानी को ; अहम् = मैं ; अत्यर्थम् = अत्यन्त ; प्रिय: = प्रिय हूं ; च = और ; स: = वह ज्ञानी ; मम = मेरे को (अत्यन्त) ; प्रिय: = प्रिय है



अध्याय सात श्लोक संख्या
Verses- Chapter-7

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29, 30

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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