"गीता 2:37": अवतरणों में अंतर
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उपर्युक्त श्लोक में भगवान् ने युद्ध का फल राज्य सुख या स्वर्ग की प्राप्ति तक बतलाया, किंतु अर्जुन ने तो पहले ही कह दिया था कि इस लोक के राज्य की तो बात ही क्या है, मैं तो त्रिलोकी के राज्य के लिये भी अपने कुल का नाश नहीं करना | उपर्युक्त [[श्लोक]] में भगवान् ने युद्ध का फल राज्य सुख या स्वर्ग की प्राप्ति तक बतलाया, किंतु [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> ने तो पहले ही कह दिया था कि इस लोक के राज्य की तो बात ही क्या है, मैं तो त्रिलोकी के राज्य के लिये भी अपने कुल का नाश नहीं करना चाहता। अत: जिसे राज्य सुख और स्वर्ग की इच्छा न हो उसको किस प्रकार युद्ध करना चाहिये, यह बात अगले श्लोक में बतलायी जाती है- | ||
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या तो तू युद्ध में मारा जाकर स्वर्ग को प्राप्त होगा अथवा संग्राम में जीतकर [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] का राज्य | या तो तू युद्ध में मारा जाकर स्वर्ग को प्राप्त होगा अथवा संग्राम में जीतकर [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] का राज्य भोगेगा। इस कारण हे [[अर्जुन]] ! तू युद्ध के लिये निश्चय करके खड़ा हो जा ।।37।। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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07:46, 4 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-2 श्लोक-37 / Gita Chapter-2 Verse-37
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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