"गीता 2:1": अवतरणों में अंतर
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भगवान् [[श्रीकृष्ण]]<ref>गीता कृष्ण द्वारा [[अर्जुन]] को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान [[विष्णु]] के [[अवतार]] माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे [[भारत]] में किसी न किसी रूप में की जाती है।</ref> ने [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के वह तीसरे पुत्र थे। अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो [[द्रोणाचार्य]] का शिष्य था। [[द्रौपदी]] को स्वयंवर में जीतने वाला वो ही था।</ref> से क्या बात कही और किस प्रकार उसे युद्ध के लिये पुन: तैयार किया, यह सब बतलाने की आवश्कता होने पर [[संजय]]<ref>[[संजय]] को दिव्य दृष्टि का वरदान | भगवान् [[श्रीकृष्ण]]<ref>'गीता' कृष्ण द्वारा [[अर्जुन]] को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान [[विष्णु]] के [[अवतार]] माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे [[भारत]] में किसी न किसी रूप में की जाती है।</ref> ने [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के वह तीसरे पुत्र थे। अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो [[द्रोणाचार्य]] का शिष्य था। [[द्रौपदी]] को स्वयंवर में जीतने वाला वो ही था।</ref> से क्या बात कही और किस प्रकार उसे युद्ध के लिये पुन: तैयार किया, यह सब बतलाने की आवश्कता होने पर [[संजय]]<ref>[[संजय]] को दिव्य दृष्टि का वरदान था, जिससे [[महाभारत]] युद्ध में होने वाली घटनाओं का आँखों देखा हाल बताने में संजय, सक्षम था। श्रीमद् भागवत् गीता का उपदेश जो [[कृष्ण]] ने [[अर्जुन]] को दिया, वह भी संजय द्वारा ही सुनाया गया।</ref> अर्जुन की स्थिति का वर्णन करते हुए दूसरे अध्याय का आरम्भ करते हैं- | ||
इस अध्याय में शरणागत् अर्जुन द्वारा अपने शोक की निवृति का एकान्तिक उपाय पूछे जाने पर पहले-पहले भगवान् ने तीसवें श्लोक तक आत्मतत्त्व का वर्णन किया है । सांख्य योग के साधन में आत्मतत्त्व का श्रवण, मनन और निदिध्यासन ही मुख्य | इस अध्याय में शरणागत् अर्जुन द्वारा अपने शोक की निवृति का एकान्तिक उपाय पूछे जाने पर पहले-पहले भगवान् ने तीसवें श्लोक तक आत्मतत्त्व का वर्णन किया है । सांख्य योग के साधन में आत्मतत्त्व का श्रवण, मनन और निदिध्यासन ही मुख्य है। यद्यपि इस अध्याय में तीसवें श्लोक के बाद स्वधर्म का वर्णन करके कर्मयोग स्वरूप भी समझाया गया है, परंतु उपदेश का आरम्भ सांख्ययोग से ही हुआ है और आत्मतत्त्व का वर्णन अन्य अध्यायों की अपेक्षा इसमें अधिक विस्तारपूर्वक हुआ है इस कारण इस अध्याय का नाम 'सांख्ययोग' रखा गया है। | ||
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13:46, 3 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-2 श्लोक-1 / Gita Chapter-2 Verse-1
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख |
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