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अपने समग्र रूप से ज्ञान-विज्ञान के कहने की प्रतिज्ञा करके अब भगवान् अपने उस स्वरूप का तत्व जानने की दुर्लभता का प्रतिपादन करते हैं-  
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मैं तेरे लिये इस विज्ञान सहित तत्व ज्ञान को सम्पूर्णतया कहूँगा, जिसको जानकर संसार में फिर और कुछ भी जानने योग्य शेष नहीं रह जाता ।।2।।
मैं तेरे लिये इस विज्ञान सहित तत्त्व ज्ञान को सम्पूर्णतया कहूँगा, जिसको जानकर संसार में फिर और कुछ भी जानने योग्य शेष नहीं रह जाता ।।2।।


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07:00, 17 जनवरी 2011 का अवतरण

गीता अध्याय-7 श्लोक-2 / Gita Chapter-7 Verse-2

प्रसंग-


अपने समग्र रूप से ज्ञान-विज्ञान के कहने की प्रतिज्ञा करके अब भगवान् अपने उस स्वरूप का तत्त्व जानने की दुर्लभता का प्रतिपादन करते हैं-


ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषत: ।
यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते ।।2।।



मैं तेरे लिये इस विज्ञान सहित तत्त्व ज्ञान को सम्पूर्णतया कहूँगा, जिसको जानकर संसार में फिर और कुछ भी जानने योग्य शेष नहीं रह जाता ।।2।।

I shall now declare unto you in full this knowledge both phenomenal and noumenal, by knowing which there shall remain nothing further to be known. (2)


अहम् = मैं ; ते = तेरे लिये ; इदम् = इस ; सविज्ञानम् = रहस्यसहित ; ज्ञानम् = तत्त्वज्ञान को ; अशेषत: = संपूर्णता से ; वक्ष्यामि = कहूंगा (कि) ; यत् = जिसको ; ज्ञात्वा = जान कर ; इह = संसार में ; भूय: = फिर ; अन्यत् = और कुछ भी ; ज्ञातव्यम् = जानने योग्य ; न अवशिष्यते = शेष नहीं रहता है



अध्याय सात श्लोक संख्या
Verses- Chapter-7

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29, 30

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)