उपर्युक्त बहुत से हेतुओं को दिखलाकर युद्ध न करने में अनेक प्रकार की हानियों का वर्णन करने के बाद अब भगवान् युद्ध करने में दोनों तरह से लाभ दिखलाते हुए अर्जुन[1] को युद्ध के लिये तैयार होने की आज्ञा देते हैं-
↑महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।