गीता 9:1

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गीता अध्याय-9 श्लोक-1 / Gita Chapter-9 Verse-1

नवमोऽध्याय प्रसंग-


इस अध्याय में भगवान् ने जो उपदेश दिया है, उसको उन्होंने सब विद्याओं का और समस्त गुप्त रखने योग्य भावों का राजा बतलाया है, इसलिये इस अध्याय का नाम 'राजविद्याराजगुह्रायोग' रखा गया है।

प्रसंग-


सातवें अध्याय में आरम्भ किये हुए विज्ञान सहित ज्ञान का सांगोपांग वर्णन न होने के कारण उसी विषय को भलीभाँति समझाने के उद्देश्य से भगवान् इस नवम अध्याय का आरम्भ करते हैं, तथा सातवें अध्याय में वर्णित उपदेश के साथ इसका घनिष्ठ संबंध दिखलाने के लिये श्लोक में पुन: उसी विज्ञान सहित ज्ञान का वर्णन करने की प्रतिज्ञा करते हैं-

श्रीभगवानुवाच


इदं तु ते गुह्रातमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे ।
ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् ।।1।।



श्रीभगवान् बोले


तुझ दोष दृष्टि रहित भक्त के लिये इस परम गोपनीय विज्ञान सहित ज्ञान को पुन: भली-भाँति कहूँगा, जिसको जानकर तू दु:ख रूप संसार से मुक्त हो जायेगा ।।1।।

Sri Bhagavan said:


To you, never envious of Me, I shall impart to you this most secret wisdom, knowing which you shall be relieved of the miseries of material existence. (1)


ते = तुझ ; अनसूयवे = दोषद्य्ष्टिरहित भक्त के लिये ; इदम् = इस ; गुह्मतमम् = परम गोपनीय ; ज्ञानम् = ज्ञान को ; विज्ञानसहितम् = रहस्य के सहित ; प्रवक्ष्यामि = कहूंगा ; तु = कि ; यत् = जिसको ; ज्ञात्वा = जानकर (तूं) ; अशुभात् = दु:खरूप संसार से ; मोक्ष्यसे = मुक्त हो जायगा;



अध्याय नौ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-9

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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