न जीते हुए मन और इन्द्रियों वाले पुरुष में निश्चयात्मिका बुद्धि नहीं होती और उस अयुक्त मनुष्य के अन्त:करण में भावना भी नहीं होती तथा भावनाहीन मनुष्य को शान्ति नहीं मिलती और शान्तिरहित मनुष्य को सुख कैसे मिल सकता है ?।।66।।
|
He who has not controlled his mind and senses can have no reason; nor can such an undisciplined man think of God. the unthinking man can have no peace; and how can there be happiness for one lacking peace of mind. ?(66)
|