जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दु:ख को समान समझ कर, उसके बाद युद्ध के लिये तैयार हो जा। इस प्रकार युद्ध करने से तू पाप को नहीं प्राप्त होगा ।।38।।
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Treating alike victory and defeat, gain and loss, pleasure and pain, get ready for the fight; then, fighting thus you will not incur sin.(38)
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