हे धनंजय[2] ! तू आसक्ति को त्याग कर तथा सिद्धि और असिद्धि में समान बुद्धिवाला होकर योग में स्थित हुआ कर्तव्य कर्मों को कर, समत्व ही योग कहलाता है ।।48।।
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Arjuna, perform your duties established in Yoga, renouncing attachment, and eventempered in success and failure; envenness of temper is called yoga.(48)
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