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जब कंस ने आकाशवाणी सुनी और ये जान लिया कि देवकी की आठवीं संतान ही उसकी मृत्यु का कारण बनेगी तो वह तलवार लेकर देवकी का वध करने के लिए तैयार हो गया। कंस को रोकते हुए वसुदेव ने कहा- "महाभाग! आप क्या करने जा रहे हैं? विश्व में कोई अमर होकर नहीं आया है। आपको स्त्री वध जैसा जघन्य अपराध नहीं करना चाहिये। यह आपकी छोटी बहन है और आपके लिये पुत्री के समान है। आप कृपा करके इसे छोड़ दें। आपको इसकी संतान से भय है। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि इससे जो भी संतान उत्पन्न होगी, उसे मैं आपको लाकर दे दूँगा।" कंस ने वसुदेव के वचनों पर विश्वास करके देवकी को छोड़ तो दिया, किन्तु उसने दोनों को आजीवन कारावास में डाल दिया।
 
जब कंस ने आकाशवाणी सुनी और ये जान लिया कि देवकी की आठवीं संतान ही उसकी मृत्यु का कारण बनेगी तो वह तलवार लेकर देवकी का वध करने के लिए तैयार हो गया। कंस को रोकते हुए वसुदेव ने कहा- "महाभाग! आप क्या करने जा रहे हैं? विश्व में कोई अमर होकर नहीं आया है। आपको स्त्री वध जैसा जघन्य अपराध नहीं करना चाहिये। यह आपकी छोटी बहन है और आपके लिये पुत्री के समान है। आप कृपा करके इसे छोड़ दें। आपको इसकी संतान से भय है। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि इससे जो भी संतान उत्पन्न होगी, उसे मैं आपको लाकर दे दूँगा।" कंस ने वसुदेव के वचनों पर विश्वास करके देवकी को छोड़ तो दिया, किन्तु उसने दोनों को आजीवन कारावास में डाल दिया।
 
;कंस द्वारा देवकी पुत्रों की हत्या  
 
;कंस द्वारा देवकी पुत्रों की हत्या  
[[कंस]] द्वारा आजीवन कारावास में डाल दिये जाने के पश्चात देवकी तथा वसुदेव का कष्टमय जीवन प्रारम्भ हो गया। बाद में समय आने पर देवकी को प्रथम पुत्र हुआ। वसुदेव अपने वचन के अनुसार उसे लेकर कंस के समीप पहुँचे। कंस ने वसुदेव का आदर किया और कहा- "इससे मुझे कोई भय नहीं है। मुझे तो मात्र देवकी की आठवीं संतान चाहिए। आप इसे लेकर लौट जायें।" वहाँ देवर्षि नारद भी उपस्थित थे। उन्होंने कंस से कहा- "राजन आपने यह क्या किया? विष्णु कपटी है। आपके वध के लिये उन्हें अवतार लेना है। पता नहीं वे किस गर्भ में आयें। पहला गर्भ भी आठवाँ हो सकता है और आठवाँ गर्भ भी पहला हो सकता है।"
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[[कंस]] द्वारा आजीवन कारावास में डाल दिये जाने के पश्चात् देवकी तथा वसुदेव का कष्टमय जीवन प्रारम्भ हो गया। बाद में समय आने पर देवकी को प्रथम पुत्र हुआ। वसुदेव अपने वचन के अनुसार उसे लेकर कंस के समीप पहुँचे। कंस ने वसुदेव का आदर किया और कहा- "इससे मुझे कोई भय नहीं है। मुझे तो मात्र देवकी की आठवीं संतान चाहिए। आप इसे लेकर लौट जायें।" वहाँ देवर्षि नारद भी उपस्थित थे। उन्होंने कंस से कहा- "राजन आपने यह क्या किया? विष्णु कपटी है। आपके वध के लिये उन्हें अवतार लेना है। पता नहीं वे किस गर्भ में आयें। पहला गर्भ भी आठवाँ हो सकता है और आठवाँ गर्भ भी पहला हो सकता है।"
 
[[चित्र:krishna-birth.jpg|thumb|200px|left|[[वसुदेव]], [[कृष्ण]] को [[कंस]] के कारागार [[मथुरा]] से [[गोकुल]] ले जाते हुए, द्वारा- राजा रवि वर्मा]]
 
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देवर्षि की बात सुनकर कंस ने बच्चे का पैर पकड़कर उसे शिलाखण्ड पर पटक दिया। देवकी चीत्कार कर उठी। कंस ने नवदम्पति को तत्काल हथकड़ी-बेड़ी में जकड़कर कारागार पर और भी कठोर पहरा बैठा दिया। इसी प्रकार देवकी के छ: पुत्रों को कंस ने क्रमश: मौत के घाट उतार दिया। [[देवकी]] से उत्पन्न प्रथम छह बच्चों को कंस ने मरवा डाला। सातवें बच्चे ([[बलराम]]) का उसे कुछ पता ही नहीं चला।<ref>पुराणों के अनुसार बलराम सर्वप्रथम देवकी के गर्भ में आये, किन्तु देवी शक्ति द्वारा संकर्षित करके वे [[वसुदेव]] की दूसरी पत्नी [[रोहिणी]] के गर्भ में स्थानांतरित कर दिये गये। इस घटना के कारण ही बलदेव का नाम 'संकर्षण' पड़ा।</ref>
 
देवर्षि की बात सुनकर कंस ने बच्चे का पैर पकड़कर उसे शिलाखण्ड पर पटक दिया। देवकी चीत्कार कर उठी। कंस ने नवदम्पति को तत्काल हथकड़ी-बेड़ी में जकड़कर कारागार पर और भी कठोर पहरा बैठा दिया। इसी प्रकार देवकी के छ: पुत्रों को कंस ने क्रमश: मौत के घाट उतार दिया। [[देवकी]] से उत्पन्न प्रथम छह बच्चों को कंस ने मरवा डाला। सातवें बच्चे ([[बलराम]]) का उसे कुछ पता ही नहीं चला।<ref>पुराणों के अनुसार बलराम सर्वप्रथम देवकी के गर्भ में आये, किन्तु देवी शक्ति द्वारा संकर्षित करके वे [[वसुदेव]] की दूसरी पत्नी [[रोहिणी]] के गर्भ में स्थानांतरित कर दिये गये। इस घटना के कारण ही बलदेव का नाम 'संकर्षण' पड़ा।</ref>

07:43, 23 जून 2017 के समय का अवतरण

कृष्ण विषय सूची
संक्षिप्त परिचय
कृष्ण जन्म घटनाक्रम
Radha-Krishna-1.jpg
अन्य नाम वासुदेव, मोहन, द्वारिकाधीश, केशव, गोपाल, नंदलाल, बाँके बिहारी, कन्हैया, गिरधारी, मुरारी, मुकुंद, गोविन्द, यदुनन्दन, रणछोड़ आदि
अवतार सोलह कला युक्त पूर्णावतार (विष्णु)
वंश-गोत्र वृष्णि वंश (चंद्रवंश)
कुल यदुकुल
पिता वसुदेव
माता देवकी
पालक पिता नंदबाबा
पालक माता यशोदा
जन्म विवरण भाद्रपद, कृष्ण पक्ष, अष्टमी
समय-काल महाभारत काल
परिजन रोहिणी (विमाता), बलराम (भाई), सुभद्रा (बहन), गद (भाई)
गुरु संदीपन, आंगिरस
विवाह रुक्मिणी, सत्यभामा, जांबवती, मित्रविंदा, भद्रा, सत्या, लक्ष्मणा, कालिंदी
संतान प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, सांब
विद्या पारंगत सोलह कला, चक्र चलाना
रचनाएँ 'गीता'
शासन-राज्य द्वारिका
संदर्भ ग्रंथ 'महाभारत', 'भागवत', 'छान्दोग्य उपनिषद'।
मृत्यु पैर में तीर लगने से।
संबंधित लेख कृष्ण जन्म घटनाक्रम, कृष्ण बाललीला, गोवर्धन लीला, कृष्ण बलराम का मथुरा आगमन, कंस वध, कृष्ण और महाभारत, कृष्ण का अंतिम समय
देवकी विवाह

देवकी मथुरा के राजा उग्रसेन के भाई देवक की कन्या थी। कंस अपनी छोटी चचेरी बहन देवकी से अत्यन्त स्नेह करता था। देवकी शूर-पुत्र वसुदेव को ब्याही गई थी। जब उसका विवाह वसुदेव से हुआ तो कंस स्वयं रथ हाँककर अपनी बहन को उसकी ससुराल पहुँचाने के लिए चला। उल्लेख है कि कंस के चाचा और उग्रसेन के भाई देवक ने अपनी सात पुत्रियों का विवाह वसुदेव से कर दिया था, जिनमें से देवकी भी एक थी।

आकाशवाणी

जब कंस रथ हाँक रहा था, तभी मार्ग में आकाशवाणी हुई- "हे मूर्ख! तू जिसे इतने प्रेम से पहुँचाने जा रहा है, उसी का आठवाँ गर्भ तेरा वध करेगा।" आकाशवाणी सुनते ही कंस का बहन के प्रति सारा प्रेम समाप्त हो गया। पुराणों के अनुसार जब कंस को यह भविष्यवाणी ज्ञात हुई कि देवकी के अाठवें गर्भ के हाथ से उसकी मृत्यु होगी तो वह बहुत सशंकित हो गया। उसने वसुदेव-देवकी को कारागार में बन्द करा दिया।

वसुदेव का वचन

जब कंस ने आकाशवाणी सुनी और ये जान लिया कि देवकी की आठवीं संतान ही उसकी मृत्यु का कारण बनेगी तो वह तलवार लेकर देवकी का वध करने के लिए तैयार हो गया। कंस को रोकते हुए वसुदेव ने कहा- "महाभाग! आप क्या करने जा रहे हैं? विश्व में कोई अमर होकर नहीं आया है। आपको स्त्री वध जैसा जघन्य अपराध नहीं करना चाहिये। यह आपकी छोटी बहन है और आपके लिये पुत्री के समान है। आप कृपा करके इसे छोड़ दें। आपको इसकी संतान से भय है। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि इससे जो भी संतान उत्पन्न होगी, उसे मैं आपको लाकर दे दूँगा।" कंस ने वसुदेव के वचनों पर विश्वास करके देवकी को छोड़ तो दिया, किन्तु उसने दोनों को आजीवन कारावास में डाल दिया।

कंस द्वारा देवकी पुत्रों की हत्या

कंस द्वारा आजीवन कारावास में डाल दिये जाने के पश्चात् देवकी तथा वसुदेव का कष्टमय जीवन प्रारम्भ हो गया। बाद में समय आने पर देवकी को प्रथम पुत्र हुआ। वसुदेव अपने वचन के अनुसार उसे लेकर कंस के समीप पहुँचे। कंस ने वसुदेव का आदर किया और कहा- "इससे मुझे कोई भय नहीं है। मुझे तो मात्र देवकी की आठवीं संतान चाहिए। आप इसे लेकर लौट जायें।" वहाँ देवर्षि नारद भी उपस्थित थे। उन्होंने कंस से कहा- "राजन आपने यह क्या किया? विष्णु कपटी है। आपके वध के लिये उन्हें अवतार लेना है। पता नहीं वे किस गर्भ में आयें। पहला गर्भ भी आठवाँ हो सकता है और आठवाँ गर्भ भी पहला हो सकता है।"

वसुदेव, कृष्ण को कंस के कारागार मथुरा से गोकुल ले जाते हुए, द्वारा- राजा रवि वर्मा

देवर्षि की बात सुनकर कंस ने बच्चे का पैर पकड़कर उसे शिलाखण्ड पर पटक दिया। देवकी चीत्कार कर उठी। कंस ने नवदम्पति को तत्काल हथकड़ी-बेड़ी में जकड़कर कारागार पर और भी कठोर पहरा बैठा दिया। इसी प्रकार देवकी के छ: पुत्रों को कंस ने क्रमश: मौत के घाट उतार दिया। देवकी से उत्पन्न प्रथम छह बच्चों को कंस ने मरवा डाला। सातवें बच्चे (बलराम) का उसे कुछ पता ही नहीं चला।[1]

कृष्ण जन्म

यथा समय देवकी की आठवीं सन्तान कृष्ण का जन्म कारागार में भादों कृष्ण पक्ष अष्टमी की आधी रात को हुआ।[2] जिस समय वे प्रकट हुए प्रकृति सौम्य थी, दिशायें निर्मल हो गई थीं और नक्षत्रों में विशेष कांति आ गई थी।

भयभीत वसुदेव नवजात बच्चे को शीघ्र लेकर यमुना पार गोकुल गये और वहाँ अपने मित्र नंद के यहाँ शिशु को पहुँचा आये।[3] बदले में वे उनकी पत्नी यशोदा की सद्योजाता कन्या को ले आये। जब दूसरे दिन प्रात: कंस ने बालक के स्थान पर कन्या को पाया तो वह बड़े सोच-विचार में पड़ गया। उसने उस बच्ची को भी जीवित रखना ठीक न समझा और उसे भी पैर से पकड़कर शिला पर पटकना चाहा, किन्तु वह कन्या उसके हाथ से छूट गई और कंस को चेतावनी देती हुई अंतर्ध्यान हो गई।

नंदोत्सव

गोकुल में नंद के पुत्र जन्म पर बड़ा उत्सव मनाया गया। नंद प्रति वर्ष कंस को कर देने मथुरा आया करते थे। उनसे भेंट होने पर वसुदेव ने नंद को बलराम और कृष्ण के जन्म पर बधाई दी। पितृ-मोह के कारण उन्होंने नंद से कहा- "ब्रज में बड़े उपद्रवों की आंशका है, वहाँ शीघ्र जाकर रोहिणी और बच्चों की रक्षा करो।"



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुराणों के अनुसार बलराम सर्वप्रथम देवकी के गर्भ में आये, किन्तु देवी शक्ति द्वारा संकर्षित करके वे वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिये गये। इस घटना के कारण ही बलदेव का नाम 'संकर्षण' पड़ा।
  2. भागवत पुराण और ब्रह्म पुराण को छोड़कर प्राय: सब पुराण श्रीकृष्ण के स्वाभाविक जन्म की बात कहते हैं, न कि उनके ईश्वर-रूप की। श्रीकृष्ण का जन्म-स्थान मथुरा के कटरा केशवदेव मुहल्ले में औरंगजेब की लाल मस्जिद (ईदगाह) के पीछे माना जाता है।
  3. हरिवंश पुराण में मार्ग का कोई वर्णन नहीं है। अन्य पुराणों में अपने आप कारागार के कपाटों के खुलने तथा प्रहरियों की निंद्रा से लेकर अन्य अनेक घटनाओं का वर्णन है।

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